NCP: एक सफल राजनीतिक यात्रा
10 जून 1999 को भारतीय राजनीतिज्ञ शरद पवार, पीए संगमा, और तारिक अनवर ने मिलकर भारतीय राजनीति में एक नई यात्रा की शुरुआत की। इस यात्रा का नाम रखा गया – ‘नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी’ या एनसीपी। इस पार्टी का गठन सोनिया गांधी के नेतृत्व पर विवाद के बाद हुआ, जिन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से निष्कासित किया गया था।
एनसीपी की स्थापना के बाद, यह पार्टी ने कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए साझेदारी की। 2004 में राष्ट्रीय सरकार बनाने के बाद, एनसीपी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और शरद पवार ने मनमोहन सिंह की सरकार में कृषि मंत्री के रूप में काम किया। लेकिन 2014 में, यूपीए के साथ हार के बाद, एनसीपी सरकार से बाहर हो गई। इसके बाद, महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा और शिवसेना के साथ साझेदारी करके एनसीपी ने सरकार बनाई, लेकिन समय के साथ मतभेदों के कारण सरकार गिर गई।
अप्रैल 2019 में, महाराष्ट्र की लोकसभा सीटों के लिए एनसीपी ने कांग्रेस के साथ समझौता किया, लेकिन विधानसभा चुनावों में वे अलग-अलग दलों के साथ चुनाव लड़े।
अक्टूबर 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद, एनसीपी ने शिवसेना और कांग्रेस के साथ सरकार बनाई, लेकिन उनके बीच मतभेद के कारण सरकार गिर गई। इसके बाद, शरद पवार ने एनसीपी की लगभग सभी इकाइयों को भंग कर दिया।
एनसीपी की यात्रा उत्तेजक और विवादों से भरी रही है, लेकिन यह हमेशा राजनीतिक मंच पर अपनी भूमिका को निभाती रही है। यह एक उदाहरण है कि राजनीतिक संघर्ष और साझेदारी कैसे देश की राजनीतिक परिदृश्य को परिवर्तित कर सकते हैं।
विचारधारा
भारतीय राजनीतिक दल एनसीपी (नेशनल कॉंग्रेस पार्टी) ने अपने स्थापना के समय से ही विचारधारा में नई दिशा देने का प्रयास किया है। नवाब मलिक, एनसीपी के मुंबई अध्यक्ष ने पार्टी के विचारों को लेकर विविध मंचों पर अपने समर्थन का इजहार किया है। उन्होंने यहां तक कहा कि भारत, पाकिस्तान, और बांग्लादेश को एक ही राष्ट्र के रूप में एकीकृत किया जाना चाहिए। उनके अनुसार, जर्मनी के पुनर्मिलन की तरह ही भारत के साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश को भी एक ही साथ लाया जा सकता है।
पार्टी चिन्ह
एनसीपी का चुनाव चिन्ह भी अनोखा है। यह एक एनालॉग अलार्म घड़ी का आकार है जिसमें दो पैर और एक अलार्म बटन होता है। इसके साथ ही घड़ी पर तिरंगे की चित्रण किया गया है, जो भारतीय ध्वज को प्रतिनिधित करता है।
राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी अब अजित पवार की पार्टी कहलाएगी
चुनाव आयोग ने अजित पवार वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी को ही असली एनसीपी करार दिया है। छह महीने से अधिक समय तक चली 10 से अधिक सुनवाई के बाद आयोग ने एनसीपी में विवाद का निपटारा कर दिया है।
करीब 24 साल पहले बनी पार्टी में बहुत कुछ बदल चुका है
शरद पवार की बनाई एनसीपी अब उनकी पार्टी नहीं रह गई है। आइये जानते हैं एनसीपी कैसे बनी? अब तक कैसा रहा उसका प्रदर्शन? अभी क्या हुआ है।
सोनिया गांधी की खिलाफत बनी एनसीपी के गठन की वजह
एनसीपी का गठन 10 जून 1999 को शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने मिलकर किया था। इसके बनने के पीछे एक बड़ा सियासी घटनाक्रम है। दरअसल, सोनिया गांधी ने जब राजनीति में कदम रखा और उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष बनाने तैयारी शुरू हुई तो शरद पवार समेत कुछ नेताओं ने इसका विरोध किया।
नई पार्टी का गठन:
एनसीपी का गठन 10 जून 1999 को शरद पवार, पीए संगमा और तारिक अनवर ने मिलकर किया था। उस समय कांग्रेस की अध्यक्षता करने की चर्चा चल रही थी, जिसके बाद सोनिया गांधी ने इस पद की घोषणा की थी। यह घटना सोनिया गांधी के खिलाफत की शुरुआत के समय की थी।
राजनीतिक उतार-चढ़ाव:
पार्टी ने अपनी शुरुआती दिनों में महाराष्ट्र में अपनी पहचान बनाई। इसके बाद 2004 में, पार्टी ने यूपीए में भी अपनी मौजूदगी बनाई। इसके बावजूद, राष्ट्रीय स्तर पर पार्टी को समय-समय पर बगावत का सामना करना पड़ा। इसका सबसे बड़ा उदाहरण 2013 में हुआ, जब पार्टी के संस्थापक पीए संगमा ने दल को अलविदा कह दिया।
राष्ट्रीय स्तर पर दर्जा का हासिला:
पार्टी ने अप्रैल 2023 में तृणमूल कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय दल का दर्जा वापस ले लिया। इससे पहले भी पार्टी को 1999 में नेशनल पार्टी का दर्जा मिला था।
पिछले साल छिना राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा
चुनाव आयोग ने अप्रैल 2023 में तृणमूल कांग्रेस और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के साथ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का राष्ट्रीय दल का दर्जा वापस ले लिया। दर्जा छिनने की वजह 2014 और 2019 लोकसभा चुनावों में पार्टी का प्रदर्शन था। एनसीपी को नेशनल पार्टी का दर्जा गठन के अगले साल यानी 2000 में मिल गया था।
2023 विभाजन
हालांकि, 2023 में एनसीपी ने एक महत्वपूर्ण बदलाव का सामना किया। उस समय, अजीत पवार ने अपने समर्थकों के साथ एनसीपी को छोड़कर शिवसेना-भाजपा सरकार में शामिल हो गए। इससे पार्टी में आंतरिक विवाद उत्पन्न हुआ और दोनों गुटों में विभाजन हो गया।
नया मोड़:
2023 में महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा उलटफेर हुआ, जब अजित पवार ने एनसीपी से बगावत कर दी। इसके बाद एनसीपी पर अधिकार पर चाचा-भतीजे आमने-सामने आ गए। अजित पवार गुट ने चुनाव आयोग का रुख किया, जबकि शरद पवार खेमे ने भी चुनाव आयोग में अपनी बात रखी। चुनाव आयोग ने दोनों पक्षों के दस्तावेज जांचें और दलीलें सुनीं। चुनाव आयोग ने एनसीपी में विवाद का निपटारा किया और अजीत पवार के नेतृत्व वाले गुट के पक्ष में फैसला सुनाया। अब एनसीपी का नाम और चुनाव चिह्न ‘घड़ी’ अजित पवार के पास रहेगा। 2024 के चुनाव के समय, एनसीपी अपने आगामी मिशन और साधनों के साथ एक नया मोड़ लेकर आएगी। इसके साथ ही पार्टी के नेतृत्व वाले दोनों गुटों को अपने-अपने सपनों और उद्देश्यों को प्रायोजित करने का मौका मिलेगा। एनसीपी का प्रभाव क्षेत्र मुख्य रूप से महाराष्ट्र में है, जहां यह राजनीतिक मंचों पर अपनी भूमिका निभाती है।
इस पार्टी का उद्देश्य राष्ट्रीय स्तर पर विकास और सामाजिक न्याय की दिशा में काम करना है और देश के हर वर्ग के लोगों की भलाई के लिए समर्थन प्रदान करना है।